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Sunday 8 May 2016

मनुश्रेया की कहानी::__ रोहित गोस्वामी

By: | In: | Last Updated:

          ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆
           मनुश्रेया की कहानी
          ◆◆◆◆◆◆◆◆◆◆




इक बार की बात है,
रात्रि का पहर था , 
जाने कैसा कहर था,
राह वीरान सी, 
लोग भी अनजान थे,
उस पर से मेरा चेहरा दुबला-पतला
मासूम सा नादन था,
हवायें भी चल रही थी,
रूह वहाँ न जाने कितनी मचल रहीं थी,
सियारों की गूँज भी कर रही अज़ब सा शोर,
शोर के माहौल से, भय से भर उठा 
था चारो  ओर।
माहौल गमगीन था, कुछ राज़ संगीन था,
उस रात्रि के साये में, काले बादल भी छायें थें।
इक अज़ब महक रगों में थी वहाँ सबके दौड़ती,
लोगों के जीने की आश को तोड़ती - मरोड़ती।
उस खुशबू के आग़ोश में मदहोस चारो और था,
शायद वहाँ किसी ने लिया फ़ैसला कुछ और था।
.........
था मै इक लैम्प के नीचे खड़ा, अचानक तभी कहीं 
कुछ शोर सुनायी पड़ा,
सुन शोर की आवाज़ को मै था पीछे मुड़ा,
मेरी रूह थी काँपती, परिस्थितियों को भांपती
फिर ताक चारों ओर से फिर जब सुना मेने गौर से,
मन्द आवाज़ में था पहले कोई मेरे नाम को पुकारता,
जब मै कर अनसुना चला राह पे, वो करने लगा पूरी 
कोशिश मुझे रोकने की चाह से,
अब लग रहा था जैसे कोई हो दर्द में चिंघाड़ता,
मै रुका वहीं, पर मुड़ा नहीं, कुछ सोच विचार के 
आवाज़ की ओर चला,
था मै बिलकुल डरा हुआ फिर भी बिलकुल 
मै नहीं टला,
कुछ दूर चल के देखा तो छाया घना अंधेरा था,
उस ज़गह लग रहा था जैसे पहले कभी न हुआ
सवेरा था।
थोड़ा और चल के मिला मुझे तिराहा, 
आवाज़ की तीव्र गति को सुन मुझे लगने लगा 
की जैसे किसी ने कयी जनमों से बस मुझे ही हो चाहा,
थे पैर मेरे थोड़े कांपते, वातावरण को मापते।
कर हिम्मत तिराहे के सामने राह पे चल पड़ा,
जहाँ से सुनायी देता किसी रूह मिलन का शोर था,
वहाँ अंधेरा घनघोर था, वो वक़्त कुछ ओर था,
 वहाँ पहुंच के देख मन्ज़र को मेरे पैर लगे थे कंपकपाने,
वहाँ सफेद लिबास में इक स्त्री थी खड़ी हुयी, जिसके अश्रु बहते 
जा रहे थे,
उसके अश्रु के मोती न जाने क्यों मुझे अपनाने को बुला 
रहे थे,
देख उस स्त्री को क्यों मुझे उससे अपनापन सा लगा,
हुआ हो जैसे जनमों बाद मिलन दिल को कुछ ऐसा लगा।
कर हिम्मत मेने पूछा उससे सब राज़, तेरे साथ क्या घटी है 
घटना मेने पूछा था फिर आज,
क्यों इतनी जोरों से तू है रात्रि को चिंघाड़ती, 
मुझे क्यों लग रहा है  जैसे तू मुझे ही हो पुकारती,
क्यों यहाँ सभी मदहोश है, 
क्यों इस जगह पे सभी बेहोश है,
क्यों यहाँ इक अज़ब सी महक है, 
क्यों तेरे साथ मेरे चेहरे पे इक अज़ब सी चमक है,
ऐसा क्या है मेरा तुझसे रिश्ता, ऐसा क्या छुपा 
हुआ है राज़, अब क्यों चुप खड़ी हो तुम मुझको बतलाओ 
सब सच आज,
रो रो के उसने मुख अपना खोला, मंद आवाज़ में उसने बोला,
तुम ही हो मेरे हमराज़, शायद तुम्हे कुछ भी नही हो याद आज,
मै स्तब्द्ध खड़ा था, मौन मुद्रा में पड़ा था,
.........
फिर उसने बतायी मुझे अपनी कहानी,
बोला की ये कभी शहर था अपना,
तेरा नाम था मनु, और मेरा नाम था श्रेया,
तू तो था इक ग्वाल बाल और मै थी इक राजकुमारी,
इक रोज़ मिले थे रानीमहल में, तब जाके प्रारम्भ 
हुयी प्रेम कहानी हमारी,
तुम थे अदभुत, तुम्हें देख खोया मेरा सुधबुद,
तुमसे मिलन को फिर मेरा जिया बेक़रार था,
शायद पहली नज़र में ही मुझे हुआ तुमसे प्यार था,
फिर मन करने लगा तुमसे बात करूँ या फिर मुलाकात करूँ,
परन्तु मै सोचती थी कैसे कुछ शुरुवात करूँ?
तब जाके मेने अपनी सखी को बताया,
पहले उसने मुझे बहुत समझाया, 
परन्तु मेरी जिद के आगे उसका पक्ष टिक नही पाया,
फिर उसने मुझे तुम्हारा पता था बताया,
उसकी मदद से मै चली मिलन को तुझसे,
न जाने उस रोज़ मेने की होगी कितनी बातें खुदसे,
अब मिलन का वक़्त था आया, 
बदल कर वेश- भूषा मेंने राह में तुझको बुलाया,
तुमने मुझसे पूछा क्या है कार्य,  किसलिए की 
मुझसे मदद की पुकार,
तब मेने कर बहना चाहा तेरा साथ पाना,
और बताया तुझे अपना बड़ी दूर ठिकाना,
मांगी मदद तुझसे रुकने की उस रात को,
वो बोला पर उसका घर न है बड़ा,
और उसके घर में माँ और वो खुद है इक छड़ा,
और ये कह मुझको तू उस रोज़ अपने घर को ले चला,
माँ से मिलाया तूने मेरी व्यथा सुनाया,
माँ ने भी मुझे गले से लगाया, और बोला तूझसे की तूने 
ठीक किया जो इसको घर ले आया,
ये कह माँ चली खाना बनाने, मे भी चली माँ के पीछे 
मदद करने के बहाने,
माँ हुयी मुझसे बहुत खुश, पूछा मेरा नाम,
श्रेया नाम बताते हुए मै करती रही काम,
इतने में तुम आये और माँ से बोले माँ ये तो है मेहमान 
क्यों इससे करा रही तुम काम,
तब मेने बोला कौन है मेहमान,
मै तुमसे और तुम्हारे घर से नही हूँ  अब अन्जान,
और अकेले में उससे बोल दिया अपने दिल का हाल,
सुन मेरे बातों को पहले तुमने समझाया, फिर जाकर 
तुमने मुझे ठुकराया,
पर मेरी हट ने तेरी एक भी न चलने दी,
और मेरी सच्चायी ने मेरी रूह तुझमें मिलने दी,
इतने में आ गयी उजली सवेरी की इक किरण,
मैंने फिर जा कर ली तुझसे विदा,
ऐसा लगा जैसे जिस्म से हुयी हो कोई रूह ज़ुदा,
न जाने कैसे ये बात राजमहल में पता चली,
इस बार तो लग गया था जैसे जान गयी हो मेरे 
जिस्म से निकली,
पिता ने मेरे दिया आदेश तेरे प्राणों को हरने का,
मंत्रियों ने न जाने कैसी सलाह दी ये अनर्थ को करने का,
मै भी भाग निकली उस राजमहल से,
तुमको बताया सारी सच्चायी फिरसे,
तूने मुझे धिक्कारा, पर मेरे प्यार को फिर भी पुचकारा,
और बोला जा चली दूर तू मुझसे,
यह सुन मै न रह पायी, तेरी इर्ष्या को न सह पायी,
इतने में आये वो यमदूत, वो बिलकुल अभी लग रहे थे 
काल का स्वरूप,
बिन कुछ कहे बिन कुछ सुने, पकड़ लिया मनु को ले चले महल में,
महल में ले जाकर सबने किया बहुत अपमान,
तुमने भी साबित किया अपने प्यार का अभिमान,
बोला सच्चा है मनुश्रेया का प्यार,
भले ही तुम्हें आज ये न हो स्वीकार्य,
ये था ईश्वर का चयन, जो हुआ था हमारा मिलन,
इसमें न कोई किया हमने गुनाह,
इक प्रेमिका को जो मैने अपने हृदय में दिया है पनाह,
इतना सुन राजा ने यमदूतों को दिया आदेश,
प्राण हर लो इसके जिससे कभी पूर्ण न हों इसके उद्देश्य,
वहाँ तब मैं भी आयी, मेने पिता के आगे बड़ी मिन्नतें मनायी,
कहा कोई गलती नही है मनु की,
मैने ही था उसको छला प्रेम रस में,
उसको ही मेने किया अपने वश में,
नही है कोई गलती उसकी पिता जी, 
नही है कोई गलती इसकी पिता जी,
इसे छोड़ दो भले तुम मेरे प्राण लो, 
किया गुनाह मेने, न इसने किया कुछ,
इतने में मनु तुमने बोला ओ मेरे हृदय की राजकुमारी,
कभी नहीं मानेंगे राजा जी क्योंकि पूरी है मेरी मृत्यु की तैयारी,
इसे सुन यमदूत ले गए तुझे काल द्वार,
मैने न जाने कितनी दी तुम्हे पुकार,
पर तू न सुना, और तू न रुका,
मै राजा को बोली, बहुत ही समझाया,
पर सभी ने मेरी बातों को हंसी में उड़ाया,
इतने में लौट आये वो यमदूत अकेले, मेरी आँखें उनसे पूछे थी 
क्यों आये हो तुम अकेले,
कहाँ है मेरा मनु कहाँ खो गए हो,
मैने भी प्रतिज्ञा ली और बोली राजा से, 
अब कभी न कभी तो हमारी रूह का होगा मिलन,
कभी तो होगा हमारी रूह का मिलन,
इतना कह मेने भी दिये प्राणों को त्याग,
और इस राज्य में फिर जैसे लग गयी हो आग,
तब से ये ऐसा ही बंजर शमशान है,
और में तुमसे मिलन को कयी जनमों से परेशान हूँ
...........
इतने में याद आया मुझको सारी बात, 
बीच बात में रोक उस स्त्री को उसका पकड़ना चाहा मैंने हाथ,
पर न पकड़ पाया, मै बहुत ही था पछताया,
रोया बहुत मै, बिलखा बहुत,
वो आयी नज़दीक और बोली पगले, 
तूमने मुझसे मिल के किया मेरी रूह को आज आज़ाद,
न जाने कितने जनमों के बाद तेरे कानो तक पहुची मेरी फरियाद,
बस अबकी अगले जन्म में मत भूल जाना मुझे, बस रखना तू सारी 
इन बातो को याद,
फिर मिलेंगे उस जन्म में, पूर्ण करेंगे सारे अधूरे कार्य,
हमारे इस रिश्ते को तब ज़माने को भी करना होगा स्वीकार्य।
चल मेरा समय पूरा हुआ, कहीं न कहीं ये जनम भी अपना अधूरा हुआ।।
ये कह उसकी रूह उड़ चली परे आसमान में,
मै आज भी फिरता हूँ उस शमशान में,
मेने जो सुनी थी अपने पूर्व जन्म की कहानी उसकी जुबानी से,
लोग आज भी अनजान है मनुश्रेया की कहानी से।
वो आती है अकसर अभी भी मेरे ख्वाबों में, मेरे सुनहरे
ख्वाबो को सज़ा हर सुबह फिर लौट जाती है।।

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