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अज़ब_सी_दुनिया_का_मैंने_तमाशा_देखा है
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अज़ब सी दुनियां का मैंने तमाशा देखा है; इस दर्द
से लिपटे ज़िस्म को हर पल बेहताशा देखा है।
कैसा लगता होगा सोचो जब नैन तो हों पर दृष्टि न हो;
कैसा लगता होगा बूझो जब जीव्हा हो पर वाणी न हो।
कैसा लगता होगा सोचो जिस पल तुम खूब करो कोशिश
पर सुन न सको; हो गलत - सही का बोध तुम्हें पर राह
को फिर भी चुन न सको।
कैसे रहता होगा सोचो ये ज़िस्म, रूह के बिना; जैसे असम्भव सा है जीवन मछली का जल के बिना।
कैसा लगता होगा सोचो जब प्यास तो हो पर पानी न हो; जैसे मन हो उछल - कूद का पर पास में ज़वानी न हो।
कैसा लगता होगा सोचो जब कलम उठाओ पर कहानी न हो; जैसे ख़तम हो गये शब्द और किसी की बाकि ज़िन्दगानी न हो।
कैसा लगता होगा सोचो जब भूख तो हो पर अन्न न हो; जैसे बिन हरि के दर्शन के सुदामा कभी धन्य न हो।
कैसा लगता होगा सोचो जब उम्मीद तो हो पर आस न हो; जैसे अपना कोई खास फिर मेरे कभी पास न हो।
कैसा लगता होगा सोचो जब घाव बहुत हों पर दिखा न सको; जैसे पास में रखा हो मरहम पर फिर भी उसको लगा न सको।
अज़ब सी दुनिया का मैंने तमाशा देखा है; इस दर्द से लिपटे ज़िस्म को हर पल बेहताशा देखा है।
.....
ज़िस्म से रूह ज़ुदा हो गयी, नैत्र वालों की दृष्टि कहाँ खो गयी?
जीव्हा वाले मौन पड़े हैं; शोर - शराबे की दुनियां में सभी बहरें खड़े हैं।
बुद्धिजीवियों के मस्तिष्क पे तालें पड़े हैं; जुएं और नशे की लत में धुत नवयुवक वर्ग बुढ़ापे पे खड़े हैं।
आज कलम की ताकत मौन हो गयी; वो क्रांतिकारी सोच कहाँ खो गयी?
अब क्यों करते तुम इंद्र को याद; पहले तो किया तुमने जल को खूब बर्बाद।
अब तो अम्ल ही बरसेगा; अब हर युवक जल को भी तरसेगा।
कहाँ से उपजेगा अब अन्न जब हर ज़गह अब सूखा होगा? कहाँ से उपजेगी बेहतर सोच जब हर पेट अब भूखा होगा?
नींद में सोये लोगो को अब नींद कहाँ से आयेगी? विनाश पे पहुँचे लोगो की अब बुद्धि हर ली जायेगी।
अज़ब सी दुनियां का मैंने तमाशा देखा है; इस दर्द में लिपटे ज़िस्म को हर पल बेहताशा देखा है।।
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दिनाँक- 20/अप्रैल/2016
2:20PM
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