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Tuesday, 3 May 2016

ज़िन्दगी का हमारे पता पूछ लो:: __ रोहित गोस्वामी

By: | In: | Last Updated:


मेरी ये पंक्तियाँ हरियाणा व राजस्थान के उस जगह विशेष के लिए है जहाँ किसी प्रेमी युगल के प्रेम का पता लगने के पश्चात प्रेमी युगलों को स्वयं उन्ही के घरवालो द्वारा ही मृत्यु द्वार पे ढकेल देते है तब मृत प्रेमी की रूह जो संवाद करती है उसकी झलक मेरी इस  प्रस्तुति में है जिसका शीर्षक -

★★★★★★★★★★★★★★★★★★★
‪#‎ज़िन्दगी_का_हमारे_पता_पूछ_लो_हुयी_है_जो_हमसें_वो_खता_पूछ_लो‬"
★★★★★★★★★★★★★★★★★★★

ज़िन्दगी का हमारे पता पूछ लो, हुयी है जो हमसे वो खता पूछ लो,
बेहिशाब जो लाखों सवाल है दुनिया के दिलों में चाहो तो फिर आज हमसे पूछ लो,
मंजिल जो मेरी तुझसे शुरू है जाकर के कहीं तुम्हीं पे ख़तम है,
तू जो साथ थी तो हर पल था ज़न्नत, उसको ही पाने की मांगी थी मन्नत,
वो टूटी सी कश्ती, समन्दर का पानी, दोहराते हैं हरदम हमारी कहानी,
वो बीहड़ सा जंगल जिसमे था हमारा बसेरा,
वो तेरे साथ हर दम मेरे जीवन का नया था सवेरा,
तुझ संग तो लगता था मेरे खुशियों का मेला, जलती बेरहम सी दुनिया ने अज़ब साज़िशों का खेल खेला,
की कोशिशें भरपूर हमसे अलग करने की तुमको,
ले लिये प्राण तुम्हारे और मार दिया हमको,
मेरी रूह थी तड़पी जब हुयी दूर मुझसे तू , वो घरोंदा भी टूटा उसी रोज़ खुदसे,
वो कैसी घड़ी थी, जो आगे विपदा खड़ी थी,
न जाने मन के रेगिस्तान में मेरे, कितनी लाशें पड़ी थी, लाश हमारी भी थी, जो ठूठ सी मुरझि थी,
बुझी धड़कनों में इक लाश मेरी थी,
तू बेसुध सी मौन होयी पड़ी थी,
मै खून से लथ - पथ जमीं पे सोया पड़ा था और तू धूल के गर्भ में कहीं खोयी पड़ी थी,
हमारी हक़ीक़त देख वो गिद्ध भी रो पड़े थे, बादल भी अपना आपा खो पड़े थे,
वहाँ का नज़ारा था, जो वो था बवण्डल, उस मंज़र को देख गमों में खोया था मण्डल,
रेगिस्तान भी भय से काँप रहा था, काल भी हमारी मृत्यु का वक़्त ताक रहा था,
हम चाहते तो हो सकते थे फिर से जीवित, पर देख के खूनी मंज़र हम प्यार करने वाले हुये चकित,
इस प्यारी सी दुनिया का ये कैसा है रूप, न जाने आज हर शक्स क्यों लग रहा था बेहरूप,
ये दुनिया भली थी पर सोच बुरी थी, जैसे की बुद्धि में मोच लगी थी,
अपने ही हो गए थे आज पराये,
अपनों के संग मय्यत में हमारी बहार वाले भी थे आये,
अब जीने की उम्मीदे छोड़ दी थी हमने,
मरने से पहले, फिर साथ मिलने का वादा लिया मुझसे तुमने,
कर वादा किया रुखसत इस रूह को, छोड़ बहुत दूर हम चले जिस्म को,
तू हुयी दफ़न उस रेगिस्तान भूमि पे,
मै लिपट कफ़न संग, जला शमशान भूमि पे,
ये अज़ब थी अपनी प्रेम कहानी, मेरी राख को भी बहाया वहाँ जहाँ दूर तक बहता था पानी,
इसी सोच पे हम बह चले है, मिलेंगे तुझको फिरसे कहीं,
शुरू करेंगे अपनी बस्ती फिरसे नयी,
इस जिस्म में न सही रूह में मिलेंगे,
मिल के संग नया जीवन शुरू करेंगे,
होगा जिस पल रूह का संगम,
मिल जायेगा हमे पुनर्जनम,
मिल के सुनायेंगे हम हज़ारों किस्से, खुशियाँ ही आएगी तब हमारे हिस्से,
हज़ारों किस्सों में इक किस्सा अपना,
जो लगता है एक बुरा सा सपना,
हमारा किस्सा सुन रोयेंगे सब, वादा करो प्यार करने वाले जुदा न होंगे अब,
जनमों - जनमों की ये है कहानी, हर जनम में इसको होते आनी,
हर जनम में होता है प्यार करने वालो का मिलन,
आत्मा का ऊपर वाला खुद ही करता है चयन।।


‪#‎copyright‬
‪#‎रोहित_गोस्वामी‬
‪#‎मेरठ‬
दिनाँक - 18/अप्रैल/2016
12:38PM







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