मेने ये कविता सर्वप्रथम डॉ० कुमार विश्वास जी के समक्ष पेश की जिधर उनसे सराहना मिलने के बाद आपके सामने रख रहा हूँ।
इस कविता का शीर्षक #तेरी_कल्पना_का_सागर है।
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#तेरी_कल्पना_का_सागर
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तेरी कल्पना के सागर में उतर भ्रमर की तरह मचल उठा,
अंधियारी रातों में मै, दीपक की चौन्ध में जल उठा,
तड़पती तृष्णा मेरी तुझे पाने को अधूरी,
न जाने कैसी तुझ बिन जिंदगी बेनूरी,
तेरे इश्क का बुखार है, छाया खुमार है,
मेरे जैसे न जाने तेरे कितने आशिक हजार है,
फिर भी कुछ तो बात है, जो ये सुहानी रात है,
तू लो और पतंगे की तरह मिलन को तैयार है,
मिलन की खुशियों में हम जलने को भी तैयार है,
देख तेरे इश्क का कैसा छाया खुमार है,
देख तेरे इश्क का कैसा छाया खुमार है,
जलन में है आग क्या, ये तो जलने वाले जानते,
मिलन में है शुकुन क्या, इश्क़ वाले जानते,
गर न रूह मिल सके, वो प्यार की जमीं कहाँ,
अश्क़ो की मोती मैं भी नमी है फिर कहाँ,
गर मिलन न हो सका तो तेरे प्यार की तलाश है,
तुझ बिन मेरी जिंदगी सूखी, वीरान सी उदास है,
तुझ बिन मेरी जिंदगी सूखी, वीरान सी उदास है,
न आग में तपिश है वो, न पानियों की प्यास है
तुझ बिन मेरी जिंदगी सुखी वीरान सी उदास है,
तेरी कल्पनाओं का सागर, बहुत ही हशीन था,
मुझे डूबने पर अपने, पूरा ही यकीन था।।
तेरी कल्पना के सागर में उतर भ्रमर की तरह मचल उठा,
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दिनाँक - 04/मई/2016
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